व्यक्ति की 36 एवं 42 वर्ष की उम्र में शनि अति बलवान होकर शुभ फल प्रदान करता है। इस अवधि में शनि की महादशा एवं अंतर्दशा लाभदायक होती है।
सभी देवी-देवताओं में सूर्य का रूप परम तेजस्वी है। सूर्य की पूजा करने से भक्तों का रूप भी उनके जैसा ही तेजस्वी और गौर वर्ण हो जाता है। सूर्य देव सभी को तेज प्रदान करते हैं परंतु उनके पुत्र शनि का रूप श्याम वर्ण बताया गया है।
सूर्य पुत्र होने के बाद भी शनि का रंग काला है, इस संबंध में शास्त्रों में कथा बताई गई है। इस कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। सूर्य का रूप परम तेजस्वी था, जिसे देख पाना सामान्य आंखों के लिए संभव नहीं था। इसी वजह से संज्ञा उनके तेज का सामना नहीं कर पाती थी। कुछ समय बाद देवी संज्ञा के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ। यह तीन संतान मनु, यम और यमुना के नाम से प्रसिद्ध हैं। देवी संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में लगा दिया और खुद वहां से चली गई। कुछ समय पश्चात संज्ञा की छाया के गर्भ से ही शनि देव का जन्म हुआ। क्योंकि छाया का स्वरूप काला ही होता है इसी वजह से शनि भी श्याम वर्ण हुए।
ये हैं शनि से जुड़ी खास बातें
शनि ऐसा ग्रह है, जिसके लिए अधिकतर लोगों का डर सदैव बना रहता है। आपकी कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे आपके पूरे जीवन की दिशा, सुख आदि सभी बात निर्धारित हो जाती हैं। ज्योतिष में शनि को क्रूर ग्रह माना गया है। शनि कुंडली के त्रिक (6, 8, 12) भावों का कारक है। यदि व्यक्ति धार्मिक हो और उसके कर्म अच्छे हों तो शनि से उसे हमेशा शुभ फल ही मिलते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार शनि की कांति इंद्रनीलमणि जैसी है। कौआ शनि का वाहन है। शनिदेव के हाथों में धनुष-बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा है।
शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी और पुरुष प्रधान ग्रह है। शनिवार इनका दिन है। स्वाद कसैला तथा प्रिय वस्तु लोहा है। शनि राजदूत, सेवक, पैर के दर्द तथा कानून और शिल्प, दर्शन, तंत्र-मंत्र और यंत्र विद्याओं का कारक है। शनि का रंग काला है। शनि मकर और कुंभ राशियों के स्वामी तथा मृत्यु के देवता हैं। यह ग्रह ब्रह्म ज्ञान का कारक है, इसीलिए शनि प्रधान लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हैं।
शनि सूर्य का पुत्र है। इसकी माता छाया एवं मित्र राहु-बुध हैं। शनि के दोष को राहु और बुध दूर करते हैं। शनि दंडाधिकारी भी है। यही कारण है कि यह साढ़ेसाती के विभिन्न चरणों में व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देकर उसकी उन्नति व समृद्धि प्रदान करते हैं। किसान, मजदूर एवं न्याय विभाग पर भी शनि का विशेष असर रहता है। जब गोचर में शनि बलवान होता है तो इससे संबंधित लोग उन्नति करते हैं।
शनि कुंडली के भाव 3, 6,10, या 11 में शुभ प्रभाव प्रदान करता है। प्रथम, द्वितीय, पंचम या सप्तम भाव में हो तो अशुभ होता है। चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर ज्यादा अशुभ होता है। यदि व्यक्ति का जन्म शुक्ल पक्ष की रात में हुआ हो और उस समय शनि वक्री हो तो शनिभाव बलवान होने के कारण शुभ फल प्रदान करता है। शनि सूर्य के साथ 15 अंश से कम रहने पर अधिक बलवान होता है। व्यक्ति की 36 एवं 42 वर्ष की उम्र में शनि अति बलवान होकर शुभ फल प्रदान करता है। इस अवधि में शनि की महादशा एवं अंतर्दशा लाभदायक होती है।
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